आई रे होली आई रे ….खिले पलास के फूल, प्रकृति ने बिखेरी खूबसूरती
बैतूल – ग्रामीण क्षेत्रों में पलाश के फूलों की बहार से होलिकोत्सव आगाज का संदेश मिल जाता है। होली पर ग्रामीण इलाकों में पलाश के फूलों से रंगों को तैयार किए जाते है। फागुन माह में पतझड़ के बाद जंगलों में सर्वत्र वीरानी छाई रहती जंगलों में अधिकतर वृक्ष सूखे दिखाई देते हैं। पलाश के वृक्ष पर बैठे पंछी ऐसा लग रहा है कि वह होली के उत्सव का आनंद ले रहे।
वृक्षों के बीच प्ले आफ द फारेस्ट के रूप में पहचाने जाने वाले प्लांट के फूल अपनी सुंदरता बिखेर रहे। होली का आगाज दिलाने वाले पलाश के फूल देखकर ग्रामीण इलाकों में होली मनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। पलाश के फूलों से होली का प्राकृतिक रंग भी बनाया जाता हैं। इतना ही नहीं इन फूलों के अर्क से औषधि भी तैयार की जाती है। आयुर्वेद में पलाश के पंचांग को उपयोगी वनस्पति का भी दर्जा प्राप्त है। कोरोना संक्रमण में होली का उत्सव पिछली बार पूरी तरह से फीका रहा लेकिन इस बार करोना संक्रमण नहीं होने के चलते लोग होली उत्सव मनाने को लेकर बेहद खुश है। इस वर्ष 17 मार्च को होलिका दहन और 18 को धुरेंडी मनाई जाएगी।
जानकारी के अनुसार वसंत ऋतु के बीतने व होलिका पर्व के नजदीक आते ही शहर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में पलाश के फूल चारों ओर दिखाई देने लगे हैं। पेड़ों पर पलाश के फूलों की बहार छाई हुई है, जिससे वातावरण का सौंदर्य बढ़ने लगा है। जंगल क्षेत्रो पर अनेक जगह पलाश के पेड़ बड़े पैमाने पर देखे जा सकते है जो होली आने का संकेत दे रहे है। सड़कों के किनारे लगे पलाश के पेड़ों पर आए फूलों ने सड़कों की रौनक बढ़ा दी है। पलाश के फूल, पत्ते व लकड़ी स्वास्थ्य के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं, जिससे कई रोगों की दवाई बनाई जाती है। टेसू के फूलों से होलिका पर्व पर रंग भी बनाया जाता है। टेसू के पेड़ जिले के अनेक ग्राम में पाए जाते है। जहां का वातावरण इन दिनों ऐसा लगने लगा है मानों पेड़ पर किसी ने दहकते अंगारे लगा दिए हैं। आमतौर पर वसंत ऋतु के समय में यह फूल खिलने लगते