पूर्व CM उमा भारती गुरुपूर्णिमा से खोलेंगी कई राज
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भोपाल
मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रदेश में शराबबंदी के लिए मोर्चा खोल रखा है। हाल ही मेें उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखा है। एक दिन पहले उन्होंने लगातार 41 ट्वीट किए। उमा भारती ने लिखा कि पिछली दोनों कोरोना की लहरों में मैं कोरोनाग्रस्त हो जाने के कारण थोड़ा अस्वस्थ रही हूँ। ऐसे में यदि मैं अपने मन की बात न कह पाऊँ एवं अपने निर्धारित लक्ष्य पर न चलूं तो मुझे घुटन होती है और मेरी अस्वस्थता और बढ़ती है। मैं गुरू पूर्णिमा से अब तक के जीवन के बारे में आपको बहुत ही शाॅर्ट में पोस्ट करूंगी। उमा ने बताया कि अब मध्यप्रदेश में शराब के खिलाफ मैंने मुहिम छेड़ी है जो कि पार्टी की नीति के अनुसार है एवं भाजपा शासित राज्यों में एक जैसी शराब नीति हो यह मेरा आग्रह है। मैं गुरू पूर्णिमा से रक्षा बंधन तक अपने जन्म से लेकर अभी तक के सभी महत्वपूर्ण प्रसंग आपसे शेयर करूंगी।
किताब लिखने को नहीं दी मंजूरी –
उमा भारती ने यह भी बताया कि दो बहुत बड़े पब्लिकेशंस ने उनकी जीवनी पर किताब प्रकाशित करना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने इसकी सहमति नहीं दी। इसका कारण बताया कि वे एक अति सामान्य व्यक्ति हैं और ऐसा कुछ विषेश है ही नहीं कि कोई किताब लिखी जाए। लेकिन गंगा सागर से चलकर किसी शराब की दुकान के सामने मैं हाथ में गाय का गोबर लेकर क्यों खड़ी हो गई, यह तो आप सबको बताऊं। तब तो मुझे पूरे जीवन का वृत्त ही संक्षेप में बताना पड़ेगा। और किताब लिखने की जगह मेरे अपने दफ्तर के ही एक सहयोगी को डिक्टेशन दूंगी तथा अपने पूरे जीवन का वृत्तांत आपको पोस्ट करूंगीं। उमा कहती हैं कि इसमें उसमें शब्द, भाषा, कॉमा, फुल स्टाॅप भी उनके ही होंगे।
एफिडेविट सरकार द्वारा लिए गये निर्णय के विपरीत
उमा ने बताया कि उन्होंने गंगा की अविरलता पर दिया गया मेरे मंत्रालय का एफिडेविट सरकार द्वारा लिए गये निर्णय के विपरीत था। ऊर्जा, पर्यावरण एवं मेरे जल संसाधन मंत्रालय की एक कमेटी बनी जिसमें तीनों को मिलाकर गंगा पर प्रस्तावित पाॅवर प्रोजेक्ट पर एफिडेविट बनाना था। फिर केबिनेट सेक्रेटरी एवं पीएमओ की सहमति के बाद हमारे मंत्रालय के माध्यम से वह सुप्रीम कोर्ट में पेश होना था। तीनों मंत्रालयों की गंगा की अविरलता पर सहमति नहीं बन पा रही थी। विश्व के, भारत के सभी पर्यावरण विषेषज्ञों की राय एवं अरबों गंगा भक्तों की आस्था दांव पर लगी थी। उन सबकी राय में हिमालय, गंगा एवं उसकी सहयोगी नदियों पर प्रस्तावित 72 पाॅवर प्रोजेक्ट गंगा, हिमालय एवं पूरे भारत के पर्यावरण के लिए संकट का विषय थे। मैंने तथा मेरे गंगा निष्ठ सहयोगी अधिकारियों ने बिना किसी से परामर्श किए कोर्ट में एफिडेविट प्रस्तुत कर दिया, उस एफिडेविट पर ऊर्जा एवं पर्यावरण मंत्रालय एवं उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र रावत की सरकार ने अपनी असहमति दर्ज की। फिर कोर्ट ने तुरंत केन्द्र सरकार से परामर्श करके उस एफिडेविट को अमान्य कर दिया। वह तो आज भी कोर्ट की सम्पत्ति है और शायद केन्द्र की सरकार उसके विपरीत नया एफिडेविट पेष नहीं कर पाई है।
न्यूज़ सोर्स दैनिक भास्कर