Betul News : पत्थर दिल बैतूल के अधिकारी, कड़ाके की ठंड में कांपते हुए स्कूल पहुँच रहे बच्चें, छिंदवाड़ा में बैतूल से कम ठंड फिर भी बदलता टाइम

Betul News: Stone-hearted Betul officials, children shivering in the bitter cold as they arrive at school, Chhindwara is less cold than Betul, yet the time changes.

फ़ाइल फ़ोटो

Betul News : बैतूल उत्तर भारत से लगातार बरस रही शीतलहर ने जिले को मानो बर्फ़ का कैदखाना बना दिया है। ठंड इतनी निर्मम हो चली है कि सुबह-शाम घर से बाहर कदम रखना खुद को सजा देने जैसा लग रहा है। ठंडी हवाओं के बेरहम थपेड़ों ने सर्दी का ऐसा कहर बरपाया है कि शरीर मानो सुन्न पड़कर जवाब देने लगा है। सबसे ज्यादा मार उन मासूम बच्चों पर पड़ रही है जिन्हें नींद से झकझोरकर इस हाड़ कंपाऊं ठंड में स्कूल भेजा जा रहा है। तापमान फिसलते-फिसलते 8 डिग्री पर आ अटका है। रविवार की रात पूरे सीजन की सबसे बेरहम रात साबित हुई। ठंड का जहर बच्चों की सेहत में साफ उतरता दिख रहा है। लेकिन फिर भी बैतूल में स्कूलों के समय में एक इंच तक बदलाव नहीं किया गया— मानो बच्चों की सेहत से ज्यादा जरूरी कुछ और हो! जबकि प्रदेश के कई जिलों ने हालात देखकर समय बदल भी दिया है।

अधिकारियों की बेरुख़ी हद पार कर रही है

कड़ाके की ठंड सिर पर चढ़ नाच रही है, लेकिन बैतूल प्रशासन का रवैया पत्थर की तरह ठंडा पड़ा है। स्कूलों का समय जस का तस— और नतीजा? नन्हें-मुन्ने छोटे-छोटे हाथ-पैर कंपाते हुए सुबह-सुबह स्कूल की कतारों में ठिठुरते खड़े मिलते हैं। परिजनों की चिंता चरम पर है, पर मजबूरी में वे बच्चों को इस सर्दी के तांडव में धकेलने पर विवश हैं।

बच्चों की सेहत पर बढ़ता खतरा, पर कौन सुने?

डॉक्टर साफ कह रहे हैं— ऐसी जानलेवा ठंड में बच्चों को सुबह घर से निकालना सीधे-सीधे उनकी सेहत से खिलवाड़ है। सर्दी, खाँसी, बुखार, निमोनिया… सबका खतरा कई गुना बढ़ चुका है। छोटे बच्चों के चेहरे पर सर्दी की चुभन किसी चीख की तरह साफ दिखाई देती है। कई माता-पिता प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं कि स्कूलों का समय बदला जाए, पर उनकी आवाज़ ठंडी हवा में गुम हो जाती है।

तापमान 8.2 डिग्री पर पहुंचा

पिछले कुछ दिनों से तापमान लगातार नीचे लुढ़क रहा है। रविवार की रात का 8.2 डिग्री सेल्सियस तापमान बैतूल के लिए इस सीजन की सबसे क्रूर रात साबित हुआ। दिन में भी ठिठुरन की चुभन हड्डियों तक उतरती जा रही है। धूप भी ऐसी फिसड्डी कि गर्माहट देने में नाकाम। बाजार से लेकर गांव तक लोग कोट-मफलर में खुद को लपेटकर ठंडी पछुआ हवाओं से बचने की जद्दोजहद करते दिखाई दे रहे हैं।

प्रशासन से उम्मीद— या यह भी बेअसर साबित होगी?

सबका सवाल एक ही— जब दूसरे जिलों ने बच्चों की सुरक्षा देखते हुए स्कूल समय बदल दिया, तो बैतूल क्यों ठिठुरते बच्चों की पीड़ा से आंख मूंदकर बैठा है? क्या यहां के बच्चों की सेहत प्रशासन की प्राथमिकता में कहीं नहीं बची?

ठंड का यह कहर आगे और बढ़ने की ही चेतावनी दे रहा है। ऐसे में सुबह की पाली में स्कूल लगना बच्चों के लिए सीधे-सीधे जोखिम है। अब प्रशासन को या तो जागना होगा, या फिर छोटे बच्चों को इस सर्दी के बेरहम कोप का शिकार होते रहना पड़ेगा।

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